स्त्री के यौनांग और उसकी कार्य प्रणाली
हम सब यह जानते हैं कि स्त्री प्रेम और पुरुषों की सेवा करने के लिए पति भक्त, कभी पत्नी के रूप में, कभी शिक्षिका तो कभी सही रास्ते का राजमार्ग दिखाने वाली और कभी तो हमारे जीवन को आनन्दित करने वाली होती है। कभी यह हमें दया का पाठ सिखाती है तो कभी ममता का पाठ और कभी प्रेम का पाठ सिखाती है। ऐसी स्त्री के शरीर की बनावट को सभी जानना चाहते हैं। देखा जाए तो स्त्री के यौनांगों की बनावट पुरुषों के जननांगों से बिल्कुल भिन्न होती है, इसे ठीक से समझने के लिए हम स्त्री के यौनांगों को कई भागों में बाट सकते हैं।
स्त्रियों के बहुत से यौनांग अंग भीतरी होते हैं और केवल योनिद्वार ही शरीर से बाहर दिखाई देता है। संभोग क्रिया के समय में आनन्द प्राप्त करने के लिए तथा इस क्रिया को समझने के लिए इन अंगों का जानना जरूरी होता है ताकि आप एक सफल पति बन सकें। जब आप अपनी पत्नी के सभी अंगों को अच्छी तरह से जान लेंगे तभी आप सेक्स क्रिया ठीक तरह से कर पायेंगे।
स्त्रियों के यौन उत्तेजित अंग
जिस प्रकार से पुरुषों के लिंग का अगला भाग अर्थात लिंगमुण्ड सबसे अधिक संवेदनशील तथा उत्तेजित होता है, उसी प्रकार से स्त्री के पूरे शरीर में सेक्स के प्रति कामोत्तेजना भरी होती है लेकिन लाज और संकोच के कारण से उनकी यह उत्तेजना दबी रहती है।
वैसे देखा जाए तो सेक्स क्रिया के समय को लम्बा करने के लिए तथा उसकी कामोत्तेजना को बढ़ाने के लिए उनकी यौन कामोत्तेजक अंग तथा संवेदनशील अंगों को सहलाकर, दबाकर तथा चूमकर कामोत्तेजना को बढ़ाया जा सकता है। इन अंगों को इस प्रकार से उत्तेजित कर सकते हैं, इससे स्त्रियों को अधिक आनन्द भी प्राप्त होता है।
उदाहरण के लिए जब तक मछली को पानी से निकालकर बाहर नहीं रखा जाता है तब तक वह तड़पती नहीं है, ठीक उसी प्रकार से जब तक स्त्रियों के यौन उत्तेजित अंगों से छेड़-छाड़ नहीं करते तब तक वह उत्तेजना में नहीं आती। इसलिए कहा जा सकता है कि जब तक पुरुष स्त्री के संवेदनशील अंगों को छेड़छाड़ करके उसमें सेक्स के प्रति भावना को जगा नहीं देता तब तक वह स्त्री सेक्स करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार ही नहीं होती है।
जो पुरुष स्त्री के यौन उत्तेजित अंगों को पकड़कर छेड़छाड़ करते हैं, उन्हें बाहों में लेते हैं, उनके अंगों को चूमते हैं, उनसे काम क्रिया का खेल खेलते हैं, उनकी बांहों से स्त्री बाहर आना ही नहीं चाहती क्योंकि जब कोई चीज किसी को मिलती है तो वह उस चीज को छोड़ना नहीं चाहता है, ठीक उसी प्रकार स्त्रियों को जब इस क्रिया में चरम सुख प्राप्त होने लगता है तो वह इस पल को कैसे छोड़ सकती है।
बहुत से पुरुष तो इस भ्रम में रहते हैं कि योनि बहुत अधिक संवेदनशील होती है जबकि हम आपको यह बताना चाहते हैं कि स्त्रियों की इस अंग के अलावा और भी अंग संवेदनशील होते हैं जो इस प्रकार हैं- स्तन, मुंह, होंठ, पीठ आंखें, तलवे, जांघ, कमर, कान तथा गाल आदि।
स्त्रियों के सेक्स करने वाले अंग के अलावा कुछ अन्य संवेदनशील तथा उत्तेजक अंग होते हो जो इस प्रकार हैं-
कान
स्त्रियों के कान बहुत अधिक कोमल भाग होते हैं, जहां वह आभूषण पहनती है। यह अधिक उत्तेजक तथा संवेदनशील अंग हैं। यदि कोई भी पुरुष अपनी पत्नी के कानों को दोनों उंगलियों से मसले तो वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाएगी। यदि आपकी पत्नी को कामेच्छा का अभाव हो तो आप उसके कान के मुलायम भाग को हल्के-हल्के से मसलें। ऐसा करने से वह उत्तेजित हो जाएगी। यहां हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि स्त्रियों की कानों पर चुंबन करने या गरम सांसें फेंकने से वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाती है। आप इस क्रिया के द्वारा अपनी पत्नी की उत्तेजना को भी जान सकते हैं कि वह इन अंगों से छेड़-छाड़ करने से उत्तेजित हो जाती है या नहीं।
गर्दन तथा गला
ये भाग भी स्त्रियों के अधिक उत्तेजक तथा संवेदनशील अंग होते हैं। इन अंगों की तंत्रिकाएं सीधे यौनांग तक जाती हैं। स्त्रियों की गर्दन तथा गले वाले भाग पर होंठों का स्पर्श तथा हल्के-हलके चुंबन करने से और सहलाने पर वह जल्दी ही उत्तेजित हो जाती हैं। आप आपनी पत्नी के इन भागों पर जीभ फिराकर देख सकते हैं कि वह किस तरह से उत्तेजित होगी।
माथा
स्त्री के माथे को चूमने से भी उसकी उत्तेजना को जगाया जा सकता है। ऐसा करने से उसकी धड़कने तेज हो जाएंगी और शरीर के खून गति भी बढ़ जाएगी। स्त्रियों के माथे पर हल्का-हल्का चुंबन लेने से उसकी यौन उत्तेजना को चरम सीमा पर पहुंचाया जा सकता है।
बाल
स्त्रियों के बाल भी बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं जिसके द्वारा उसको सेक्स करने के लिए उत्तेजित किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि उनके बालों से ऐसी किरणें निकलती हैं जो पुरुषों की सेक्स उत्तेजना को बढ़ा देती हैं। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि सुंदर बाल वाली स्त्रियों के साथ सेक्स क्रिया करने से पुरुष काफी देर तक उत्तेजित रहता है। यह भी देखा गया है कि यदि पुरुष स्त्री के बालों को अपनी उंगलियों में फंसाकर सहलाए तो उनके शरीर में उत्तेजना भरने लगती है तथा उसका शरीर मचलने लगता है।
स्तन
वैसे देखा जाए तो स्तन स्त्री-पुरुष दोनों में ही होते हैं लेकिन पुरुष में यह छोटी घुंडियों के रूप में होते हैं और स्त्री में यह पूरे रूप से उभरा हुए रहते हैं। जब लड़की छोटी होती है तो यह उनमें पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं लेकिन जब वह तरुण अवस्था में पहुंचती है तो उसके स्तन विकसित होकर एक बड़े रूप में उभर जाते हैं। स्त्रियों में जिसके स्तन अधिक विकसित सुडौल व उठे हुए होते हैं। उस स्त्री का शरीर और भी अधिक सुन्दर लगता है। यह सौन्दर्य का प्रतीक भी माने जाते हैं, जब स्त्री युवा अवस्था में होती है तब उसका मासिकधर्म आना शुरू हो जाता है तथा इसके साथ ही उसके स्तनों में भी उभार आने लगता है तथा सीने पर दोनों तरफ गोलाइयां भी उभरने लगती हैं जो लगभग 14 से 17 वर्ष की उम्र तक काफी पुष्ट हो जाती हैं। प्रकृति के अनुसार स्तनों का उपयोग बच्चे को आहार उपलब्ध कराने के लिए होता है लेकिन सेक्स क्रिया में भी स्तनों का स्पर्श व हल्का दबाव स्त्री को कामोत्तेजित करने में सहायक होता है।
बहुत से लड़कियों के स्तनों का विकास धीरे-धीरे होता है और कुछ के निप्पल पहले उभरने लगते हैं और कुछ के स्तन की गोलाई पहले उभरती है। इस तरह से यदि स्तनों का विकास होता है तो कुछ लड़कियां इसे छिपाकर रखने की कोशिश करती है क्योंकि इस तरह के स्तन अधिक अच्छे नहीं लगते हैं। कुछ लड़कियां इस बात की चिंता नहीं करती हैं और इसे सामान्य ढंग से लेती हैं।
लड़कियों के स्तनों में जब बदलाव होने लगता है तो उनकी मां को चाहिए कि वह अपनीलड़कियों को इस बदलाव को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करें। इस बदलाव के कारण से वह जिस तरह के कपड़े पहनना चाहती है, उसे पहनने से रोकना नहीं चाहिए और उस पर किसी चीज का कोई भी दबाव नहीं डालना चाहिए। आज भारत में कुछ ऐसे परिवार भी हैं जो पुराने परम्पराओं को अधिक मान्यता देते हैं और अक्सर अपनी लड़की में आने वाले परिवर्तनों के बारे में ठीक ढंग से शिक्षा नहीं देते, जिसके कारण से वे अधिक चिंतित रहती हैं। इस प्रकार के चिंता से उनके शरीर का स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगता है। यदि किसी के परिवार में कोई लड़की अपने स्तनों के बदलते रूप के कारण से चिंतित हो और उसके चेहरे पर बेचैनी और परेशानी दिखाई दे तो मां को चाहिए कि वह उसे कठोर नजरों से न देखकर सहेली के रूप में उससे बात करें। उसे समझाएं कि इस उम्र में यह बदलाव होना जरूरी होता है क्योंकि इससे तुम्हारी सुंदरता में और चार चांद लग जायेगा। इस उम्र में लड़कियों को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है जो मां से ज्यादा और कोई नहीं दे सकता है।
बहुत से पुरुष तो ऐसे होते हैं जो यौन शिक्षा को न जानने के कारण से सेक्स क्रिया के समय स्तनों को इतना जोर से दबाते हैं कि उनका आकार बिगड़ने लगता है क्योंकि स्तनों की कोशिकाएं बहुत कोमल होती हैं। इन्हें अनुचित ढंग से दबाने व मसलने से उसके रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है जिसके कारण से स्तनों का सौंदर्य व आकर्षण बिगड़ने लगता है और स्तन ढीले पड़कर लटक जाते हैं। हम आपको यह भी बताना चाहते हैं कि स्त्री के स्तनों का निर्माण कुछ विशेष ग्रंथियों तथा कोमल पेशियों से होता है। इन ग्रंथियों पर हल्का चोट लगने व अनावश्यक दबाव से उनमें सूजन उत्पन्न हो सकती है। इसके कारण से रक्त व दुग्धवाहिनी नलिकाओं में भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इस कारण से स्त्री को बहुत अधिक दर्द का भी सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से स्त्री यौन संबंध बनाने से डरने भी लगती हैं। इसलिए सेक्स क्रिया में स्तन को इतना ही दबाना चाहिए जितना की जरूरत हो।
स्त्रियों के स्तनों को इतना अधिक संवेदनशील होता है कि उसको छूने मात्र से ही वह सेक्स के लिए उत्तेजित हो जाती है। इसके अतिरिक्त यह देखा गया है कि इसको छूने से पुरुष भी उत्तेजित हो जाता है। हम यह भी आपको बताना चाहेंगे कि पुरुष तो स्त्रियों को देखने मात्र से ही उत्तेजित हो जाता है। स्तनों को हल्के हाथ से दबाने तथा सहलाने से स्त्रियों में उत्तेजना बढ़ने लगती है। स्तनों के चूचक (निप्पल) अति संवेदनशील होते हैं। इसको सहलाने, छूने, चूसने तथा चुंबन लेने से स्त्री इतना अधिक उत्तेजित हो जाती है कि सेक्स के लिए तैयार हो जाती है और अपने जीवन साथी को कसकर पकड़ लेती हैं।
गाल
स्त्रियों का यह हिस्सा भी अधिक संवेदनशील होता है। यदि पुरुष अपने गालों से उसके गाल को छुए, गालों को सहलाए, चुंबन ले तथा उस पर जीभ फेरे तो स्त्री तुरंत उत्तेजित जो जाती है। सेक्स विशेषज्ञों के अनुसार कुछ स्त्रियों के गालों में इतनी अधिक सेक्स के प्रति कामोत्तेजना होती है कि पुरुष के द्वारा गालों को सहलाने या चुंबन लेने पर वे उन्माद में भावविह्नल हो जाती हैं। वह कामोत्तेजना के कारण से इतना अधिक उत्तेजित हो जाती हैं कि अपने साथी को बाहुपाश में जकड़ लेती हैं और सेक्स करने के लिए सिसकारियां भरने लगती हैं।
होंठ
यह स्त्री का वह अंग होता है जिस पर अपने होंठों द्वारा चुंबन लेने से वह इतनी अधिक कामोत्तेजित हो जाती है कि उसके शरीर का अंग-अंग उत्तेजना में फड़कने लगता है। यह भी देखा गया है कि पुरुष के द्वारा होंठों से होंठों को चूमने, चूसने तथा हल्के से दांत गाड़ने पर स्त्री की उत्तेजना कई गुना बढ़ जाती है।
जीभ
ऐसा माना जाता है कि स्त्री की जीभ भी अधिक उत्तेजक तथा संवेदनशील अंग है। यदि कोई पुरुष स्त्री के जीभ को अपने होंठों से खीचता, दबाता तथा चूमता तो वह कामोत्तेजित हो जाती है।
मांसल अंग
स्त्रियों के मांसल अंग, जांघ, पेट तथा कूल्हे होते हैं और ये अधिक संवेदनशील होते हैं। यदि पुरुष इन अंगों को अपने हाथों से सहलाए, चुंबन ले या उन पर जीभ फेरे तो वह जल्दी ही कामोत्तेजित हो जाती है। स्त्री की नाभि को दूसरी भगनासा कहा जाता है। इसलिए उसकी नाभि को देखते ही पुरुष उत्तेजित हो जाता है। जब पुरुष स्त्री की नाभि को सहलाता है, चूमता है या छूता है तो वह सेक्स के प्रति उत्तेजित हो जाती है। कुछ पुरुष स्त्री की नाभि को अपनी जीभ से सहलाते हैं तो वह इतनी अधिक उत्तेजित हो जाती है कि अपने आप को पुरुष के हवाले कर देती है। अधिकतर यह भी देखा गया है कि पुरुष स्त्री के कूल्हे, पिंडलियों तथा जांघ को अपने हाथों से मसलते हैं तो इससे ठंडी स्त्री भी उत्तेजित हो जाती है। स्त्री के पैरों का तलवा भी बहुत ही उत्तेजित अंग है। यदि पुरुष अपनी उंगलियों को स्त्री के तलवों पर हल्के-हल्के फेरता है तो इससे स्त्री उत्तेजित हो उठती है। उसकी योनि में सुरसुराहट होने लगती है तथा जल्दी ही कामोत्तेजना की भावना उसमें भरने लगती है। इसके प्रभाव से स्त्री की सूखी योनि गीली होने लगती है, उसकी उत्तेजना इतनी अधिक बढ़ जाती है कि पुरुष का लिंग पकड़कर अपनी योनि में प्रवेश करने की कोशिश करने लगती है। ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर पुरुष को चाहिए कि वह तुरंत ही उससे संभोग क्रिया करना शुरू कर दें।
स्त्रियों के सेक्स करने वाले अंग (Female Sex Organs)
स्त्री के इस भाग को उत्तेजित करने में प्रायः कुछ समय लग जाता है। इसके लिए पुरुष को चाहिए कि वह अपने हाथों से या लिंग से स्त्री के भगनासा को रगड़े या इसे उंगिलयों के द्वारा धीरे-धीरे मसले या फिर इस पर चुंबन लें या जीभ के द्वारा इस भाग को सहलाएं। ऐसा करने से स्त्री को इतना अधिक आनन्द मिलता है कि वह तुरंत ही कामोत्तेजित हो जाती है।
भग
यह स्त्री का सेक्स क्रिया को करने के लिए सबसे प्रमुख भाग होता है तथा यह उस स्थान पर स्थित होता है जिस स्थान पर पुरुषों का जननेंद्रिय होता है अर्थात यह स्त्री के जंघाओं की संधियों के बीच पेडू के नीचे तथा गुदा के आगे वाले सभी हिस्से का क्षेत्र होता है। जब लड़की यौवनावस्था में प्रवेश करती है, तब इस क्षेत्र में काफी परिवर्तन हो जाता है। इस समय में लड़कियों के भग के आस-पास रोएं तथा नीचे चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न होने लगता है। इसी कारण यह क्षेत्र मुलायम हो जाता है तथा फूला रहता है। इस अवस्था में जब स्त्रियां उत्तेजित होती हैं तो उनका भग प्रदेश में तेजी से रक्त संचार होने लगता है जिसके कारण से यह क्षेत्र थोड़ा सा फूल जाता है।
यदि स्त्री कमर के बल लेट जाए और दोनों घुटनों को मोड़कर अपनी जांघों को थोड़ा सा फैला लें तो उसका पूरा भग दिखाई देने लगेगा। इसी भग के भाग में स्त्री के सारे बाहरी यौनांग स्थित होते हैं।
बृहद भगोष्ठ
भग के बीचों-बीच एक लम्बी सी दरार होती है जिसके दोनों ओर के भाग देखने में होंठ की तरह लगते हैं। इन्हें बृहद भगोष्ठ कहते हैं। ये कपाट के समान भग को ढके रखते हैं। यह अधिकतर 3 इंच लम्बे होते हैं जो मोटे तथा गुदगुदे लगते हैं। इन भगोष्ठों की बाहरी सतह की त्वचा पर बाल होते हैं। वसा और स्नायु के द्वारा बृहद भगोष्ठ का निर्माण होता है। वृद्धावस्था तथा बचपन में वसा की मात्रा में कमी हो जाने से यह सिकुड़ा हुआ रहता है। इस बृहद भगोष्ठ के पीछे की ओर छोटे-छोटे दो कोमल तथा गुलाबी रंग के क्षुद्र भगोष्ठ होते हैं जिनकी लम्बाई लगभग डेढ़ इंच होती है। जिस स्त्री का बच्चा न हुआ हो, उसके बृहद् भगोष्ठ आपस में सटे रहते हैं तथा उसके बीच में स्थित अन्य बाहरी अंग दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन जिस स्त्री का बच्चा हो चुका होता है, उस स्त्री के बृहद् भगोष्ठ थोड़ा सा खुला हुआ होता है और जिससे उनके मध्य दरार में स्थित अन्य बाहरी अंग दिखाई देने लगते हैं।
अगर वृहद भगोष्ठ तथा क्षुद्र भगोष्ठ को फैलाया जाए तो अन्दर की ओर दो छिद्र दिखाई देते हैं। ऊपर वाला छोटा छिद्र मूत्रद्वार तथा नीचे का बड़ा छिद्र योनि द्वार होता है। भगोष्ठों में तंतु पाए जाते हैं। यह बहुत ही कोमल होता है। इसके ऊपर पतली श्लैष्मिक झिल्ली (म्यूकस मेंब्रेन) होती है जो इसे नम और लचीला बनाये रखती है। क्षुद्र तथा वृहद दोनों भगोंष्ठ आपस में एक-दूसरे को ढके रहते हैं। इसी वजह से यह भाग सुरक्षित रहता है। जब स्त्रियां उत्तेजित होती हैं तो क्षुद्र तथा बृहद दोनों भगोष्ठ में तेजी से रक्त संचार होता है जिसकी वजह से ये फूल जाते हैं और सेक्स क्रिया के समय में आनन्द महसूस होता है।
छोटा भगोष्ठ (लघु भगोष्ठ)
वृहद भगोष्ठ को उंगली से इधर-उधर हटाने पर इनके अन्दर कुछ छोटे आकार के अंग दिखाई देते हैं। यह योनि के दरार के दोनों ओर होते हैं। इनकी लम्बाई लगभग एक से डेढ़ इंच तथा चौड़ाई 8 मि.मी. से 15 मि.मी. तक होती है। इन्हें छोटा भगोष्ठ (लघु भगोष्ठ) कहा जाता है। ये दो होते हैं जो भगनासा के सामने आपस में मिले रहते हैं।
कामाद्रि
यह भग प्रदेश का वह भाग होता है जो बालों से ढका रहता है तथा कुछ फूला हुआ होता है। इस क्षेत्र को कामाद्रि कहते हैं। स्त्री के इस भाग में त्वचा के नीचे कुछ अधिक मात्रा में चर्बी जमा होती है। इसलिए यह भाग थोड़ा उभरा हुआ लगता है। यदि इस जगह को उंगली से टटोला जाए तो उसके पीछे भगसंधि की हड्डी होती है। यह भाग अधिक संवेदनशील होता है।
योनि
भग के नीचे की ओर गुहा के मुंह जैसा एक छिद्र होता है जिसे योनि कहते हैं। यह स्त्री का मुख्य रूप से इंद्रिय तथा जननांग होता है। लेकिन इसका प्रवेश द्वार बाहर की ओर होने के कारण से इसे बाहरी जननांग में रखा गया है। योनि आकार में स्त्रियों के कद-काठी के अनुसार होता है। यह मांसपेशियों तथा अनैच्छिक तंतुओं से निर्मित होता है जिसके कारण इसमें फैलने और सिकुड़ने की स्वाभाविक क्षमता होती है। सेक्स क्रिया करते समय लिंग का प्रवेश जब योनि में होता है। इसी योनिमार्ग से होकर वीर्य तथा शुक्राणु गर्भाशय में प्रवेश करते हैं।
योनिच्छद
जो स्त्रियां कुंवारी होती हैं उनकी योनिमार्ग एक पतली सी झिल्ली से ढंकी होती है, इसे योनि पटल, योनिच्छद, हाइमेन तथा कुमारीच्छद कहते हैं। यह पर्दा किसी स्त्री में अर्धचन्द्राकार तो किसी में गोल स्वरूप में होता है। किसी स्त्री में इस पर्दे की त्वचा बहुत पतली और किसी स्त्री में इस पर्दे की त्वचा कुछ मोटी और सख्त होती है। अधिकतर यह पर्दा पहली बार स्त्री संभोग क्रिया करती है तो पुरुष के लिंग के दबाव के कारण से फट जाता है जिसके कारण से स्त्री को थोड़ा बहुत कष्ट अनुभव होता है तथा थोड़ा सा रक्तस्राव भी होता है। जिस स्त्री का यह पर्दा मोटा तथा सख्त होता है, वह फट नहीं पाता, लेकिन ऐसा बहुत ही कम देखा गया है। ऐसी स्थिति में शल्य चिकित्सा के द्वारा चीरा जाता है। लघु भगोष्ठ के अंदर तथा योनि के ऊपर बार्थोलिन ग्रंथि (BARTHOLIN GLAND) होती है। जब स्त्री को सेक्स उत्तेजना होती है तब इससे एक प्रकार का स्राव होता है।
स्त्री को प्रत्येक महीने योनिमार्ग से मासिकस्राव (Menstrual Fluid) होता है। इस अवस्था में योनिद्वार से एक प्रकार का स्राव होता है जिसे लैक्टिक एसिड कहा जाता है। जब यह स्राव डिंब अंडाशय से बाहर निकलता है तब लैक्टिक एसिड की कम हो जाती है जिसके कारण से शुक्राणु को जीवित रहने में मदद मिलती है। इस एसिड के कारण से बैक्टीरिया योनि पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाते हैं।
अधिकतर 13 से 14 वर्ष की आयु की लड़कियों का मासिकस्राव आना शुरू हो जाता है जो 46 से 48 वर्ष की उम्र तक चलता रहता है। यह स्राव 3 से 5 दिनों तक गर्भाशय से निकलकर बाहर आता है। मासिकस्राव को मासिकधर्म के नाम से भी जाना जाता है। स्राव लाल रंग का होता है। यह 28 दिन में एक बार होता है। किसी-किसी स्त्री को एक-दो दिन आगे-पीछे भी हो सकता है।
योनिद्वार
यह योनि के पास वह भाग होता है जो सामान्य स्थिति में बंद रहता है क्योंकि योनि की अगली तथा पिछली दीवारें एक-दूसरे से सटी रहती हैं। ये फैलने तथा सिकुड़ने में सक्षम होती है। इसलिए इसके अंदर लिंग, कोई यंत्र या उंगली प्रविष्ट कराने या अंदर से मासिकस्राव अथवा प्रसव के समय बच्चे को बाहर निकालने के समय यह योनिद्वार फैलकर खुल जाता है। कभी-कभी कुछ स्त्रियों में योनि की अगली व पिछली दीवारों का भाग योनिद्वार से ही दिखाई पड़ने लगता है। ऐसा अधिकतर उस समय होता है जब इसके फैलने तथा सिकुड़ने की गति में कमी हो जाती है या बार-बार बच्चे को जन्म देते रहने पर या फिर अधिक समय तक संभोग क्रिया करने से होता है।
भगांकुर (भगनासा)
योनिद्वार के ऊपरी भाग में तथा क्षुद्र भगोष्ठ के बीच के भाग में मटर के दाने जैसा एक छोटा-सा मांस का अंकुर होता है जिसे भंगाकुर अथवा भगनासा कहते हैं। इसकी संरचना पुरुष के लिंग के समान लगती है इसलिए इसे छोटा लिंग (मिनिएचर पेनिस) के नाम से जाना जाता है। इसे भगशिश्न भी कहा जाता है। यह पुरुष के लिंग के समान ही अधिक संवेदनशील होता है।
जब स्त्रियां संभोग क्रिया के समय उत्तेजित होती हैं तो यह भगांकुर रक्त से भर जाता है जिसके कारण उसमें कठोरता आ जाती है। जब पुरुष अपने लिंग को योनि में डालकर घर्षण करता है तब इसमें प्रहर्षण (Thrill) उत्पन्न होता है और स्त्री को आनन्द महसूस होता है। वह संभोग क्रिया से पूरी तरह से आन्नदित हो उठती है। इसके बाद यह पुरुष के लिंग की तरह ही ढीला हो जाता है। यदि सेक्स करने से पहले काम-क्रीड़ा के समय स्त्री के भगांकुर को ठीक तरीके से उत्तेजित किया जाए तो वह पूरी तरह से संतुष्ट हो जाती हैं।
यह स्त्री का सबसे संवेदनशील अंग होता है क्योंकि स्त्रियों के इस अंग को हल्के-हल्के व धीरे से उंगलियों से सहलाने पर अपार सुखदायक आनन्द की अनुभूति होती है। स्त्री चाहे कैसी भी मंद उत्तेजना वाली क्यों न हो, यदि उसकी भगनासा को ठीक प्रकार से सहलाया जाए या उससे छेड़-छाड़ की जाए तो उसमें भी कामवासना जागने लगती है। ऐसा करने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्त्री को शारीरिक या मानसिक उत्तेजना होने पर भगनासा में रक्त संचार अधिक बढ़ जाता है तथा यह अंग कठोर होकर अपने सामान्य आकार से लगभग डेढ़ गुना बड़ा हो जाता है। इस स्थिति में भगनासा की त्वचा से एक सफेद रंग का विशेष गंध वाला पदार्थ का स्राव होता है जो भगनासा के अगले भाग तथा वृहद व लघु भगोष्ठों के बीच बनी सिकुड़न में इकट्ठा हो जाता है। इसकी सफाई पर स्त्री को विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह पदार्थ जब जमा होकर जमने लगता है तो इससे खुजली, सूजन व जलन की समस्या होने लगती है। यदि स्त्रियों के इसमें इस प्रकार की समस्यां बहुत दिनों तक बनी रही तो स्त्री का यह भाग स्पर्श की अनुभूति व संवेदनशील नहीं रह पाएगा।
योनि की दरार
यह दरार भगनासा के नीचे दोनों ओर भगोष्ठों से घिरी हुई स्थान है जिसमें सबसे नीचे की तरफ योनिछिद्र होता है जो कुमारी स्त्रियों में एक पतली झिल्ली से ढका हुआ होता है।
मूत्रद्वार
यह मूत्रद्वार स्त्रियों का वह द्वार होता है जिससे वे मूत्र त्याग करती हैं। यह लगभग भगनासा से आधा इंच नीचे की तरफ तथा योनि छिद्र के थोड़ा ऊपर एक छिद्र होता है, इसे ही मूत्रद्वार कहा जाता है। यह लगभग डेढ़ इंच लम्बी एक नली का मुख होता है जो अन्दर से मूत्राशय के साथ जुड़ी होती है। इस द्वार के थोड़ा पीछे दोनों तरफ एक-एक बहुत बारीक नलिका होती हैं, जिन्हें स्क्रीन ग्रंथियां कहा जाता है। ये लघु भगोष्ठों तथा योनिछिद्र के पिछले भाग में दोनों तरफ खुलती हैं जो दिखाई नहीं देती हैं। जब कामोत्तेजना होती है तब इन ग्रंथियों से बहुत चिकना, रंगहीन तथा पारदर्शक पदार्थ का स्राव होता है जो पूरे योनिमार्ग को गीला व चिकना बनाया रखता है।
डिंबग्रंथियां
इनमें अंडे तथा डिंब उत्पन्न होते हैं। डिंब ग्रंथियों को अंडाशय भी कहा जाता है। यह बादाम के आकार की दो डिंब ग्रंथियां होती हैं जो गर्भाशय के दोनों ओर श्रोणि के नीचे बाहरी भागों में होता है। यह अनैच्छिक मांसपेशियों तथा अनेक तंतुओं से निर्मित होती हैं। संपूर्ण डिंबाशय को ओवरी कहा जाता है। डिंब ग्रंथि में केवल अंडे का निर्माण होता है और यहां पर ही इसका पोषण होता है। यह ही स्त्री हार्मोन का निर्माण करता है जो स्त्रियों के स्वास्थ्य, स्तनों के आकार, सौंदर्य, मासिकचक्र, स्तनों में दूध का निर्माण, गर्भ का विकास तथा उसकी सक्रियता और स्वास्थ्य बनाये रहता है।
डिंब वाहिनियां
यह गर्भाशय के ऊपरी भाग से शुरू होकर दो भुजाओं की तरह डिंबकोष के दोनों ओर दाएं तथा बाएं फैली होती है। इन्हें डिंब प्रणाली भी कहा जाता है। इसका आकार 4 से 5 इंज लम्बा होता है। इसका एक किनारा गर्भाशय से तथा दूसरा डिंब ग्रंथियों से जुड़ा होता है। इन्हीं के द्वारा डिंब ग्रंथियों से डिंब गर्भाशय में पहुंचता है। इसके अन्दर से एक प्रकार का स्राव उत्पन्न होता है जो यहां से निकलकर डिंब को गर्भाशय तक पहुंचाने में सहायता करता है।
गर्भाशय
यह स्त्री के श्रोणि गुहा तथा मूत्राशय के पीछे की ओर कमर के निचले भाग में स्थित होता है। इसके तीन भाग होते हैं जो इस प्रकार है- बॉडी, ग्रीवा तथा बुध्न। बुध्न इसका ऊपरी भाग होता है जो सामने की ओर मूत्राशय द्वारा टंगा रहता है। इसके दाईं-बाईं ओर डिंब वाहिनियां होती है जो खुली रहती हैं।
गर्भाशय का एक और भाग होता है जिसे बॉडी कहते हैं। इसकी दीवारें अनैच्छिक मांसपेशियों से बनी होती हैं जो आसानी से फैल और सिकुड़ सकती हैं। इसकी अंदरुनी भाग श्लेष्मिक झिल्लियों से ढकी रहती है जो काफी तंग होता है। गर्भाशय के नीचे के भाग को ग्रीवा कहते हैं। इसका निचला भाग योनि में खुलता है और इसी के द्वारा वीर्य गर्भाशय में पहुंचता है।
डिंब
इसका निर्माण डिंबकोष में होता है और इसकी निर्माण की प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार की क्रिया है जिस प्रकार से पुरुषों में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। ये आकार में काफी छोटे-छोटे होते हैं। जब इसका मिलन पुरुष के शुक्राणु से होता है तो स्त्री गर्भवती हो जाती है।
स्त्रियों के यौनांगों से संबंधित कुछ विशेष बातें-
• स्त्री के भगांकुर के थोड़ा सा नीचे एक सूक्ष्म छिद्र होता है। सेक्स क्रिया के समय में इस छिद्र का कोई संबंध नहीं होता है लेकिन मूत्रछिद्र के नीचे बड़े भगोष्ठ दिखाई पड़ते हैं। इन भगोष्ठों पर उंगली फेरने से स्त्री बहुत जल्दी कामोत्तेजित हो जाती है। जब स्त्री को ऐसा करके कामोत्तेजित कर ले उसके बाद ही लिंग को उनके योनि में प्रवेश करना चाहिए। वैसे मासिकधर्म के समय में भी इसी छिद्र से स्राव होता है।
• हम जानते हैं कि योनि एक पाइप की तरह खोखली नली के समान होती है और लघु भगोष्ठों से शुरू होकर गर्भाशय तक पहुंचने का यही एक रास्ता है और प्रजनन के समय नवजात शिशु भी इसी से होकर योनि द्वार से बाहर निकलते हैं।
• योनिपथ की लम्बाई 8 से 10 सेंटीमीटर होती है। इसके फैलने की क्षमता इतनी अधिक होती है कि इसमें सेक्स क्रिया के समय में 8 से 10 या 15 से 18 सेंटीमीटर लम्बा और 8 से 10 सेंटीमीटर व्यास का लिंग आसानी से अंदर प्रवेश कर सकता है तथा इसमें प्रवेश कराके घर्षण भी आसानी से किया जा सकता है। इससे स्त्री को दर्द भी नहीं होता है बल्कि स्त्री को इससे आनन्द ही मिलता है।
• योनिमार्ग की यह विशेषता है कि एक ओर तो बच्चे को जन्म देते समय इसी मार्ग से बच्चे को बाहर निकालती हैं तथा यह दूसरी ओर सेक्स क्रिया के समय में पतले से पतले लिंग को भी आसानी से जकड़ लेती है। यह विशेषता योनिमार्ग में नहीं होती तो स्त्री को इसमें लिंग प्रवेश कराने से इतना अधिक आनन्द नहीं मिलता है जितना सेक्स क्रिया के समय में मिलता है।
• सभी स्त्रियों को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब वह पहली बार संभोग क्रिया करती है तब पुरुष का लिंग उसके योनि में प्रवेश करता है तो योनिमार्ग में झिल्ली का एक पर्दा लगा होता है वह लिंग के दबाव से फट जाती है और उससे खून बहने लगता है तथा थोड़ा बहुत दर्द भी होता है। ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि यह पर्दा बहुत नर्म होता है। ऐसा होने पर स्त्री को कभी भी मानसिक तनाव या भावनात्मक भय नहीं रखना चाहिए। कभी-कभी यह झिल्ली किसी अन्य कारण से अपने-आप भी फट जाती है। इसके फटने का सबसे बड़ा कारण यह है कि जब वह पहली बार संभोग क्रिया करती है तो उस समय लिंग के दबाव से यह झिल्ली फट जाती है, जिस कारण कुछ रक्त भी निकलता है। कभी-कभी यह झिल्ली खेल-कूद, दौड़-भाग तथा साइकिल चलाने आदि कारणों से भी फट सकती है।
• कभी-कभी स्त्रियां यह सोचकर भयभीत रहती हैं कि विवाह के बाद जब मेरा पति मुझसे सेक्स क्रिया करेगा तो मेरी योनि फट जायेगी और मैं मर जाऊंगी। इस कारण से वे डरती रहती हैं। उनकी इस प्रकार की सोच से न केवल सेक्स क्रिया का आनन्द नष्ट होता है बल्कि पूरे जीवन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी भी स्त्रियों को ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि योनि की कुमारीछिद्र के फटने से थोड़ा बहुत ही खून निकलता है तथा मामूली सा दर्द होता है।
• कभी भी पुरुषों को अपने मन में यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि पहली संभोग क्रिया के समय में पत्नी के योनि से खून क्यों नहीं निकला, कही मेरी पत्नी पहले से ही किसी और से संभोग क्रिया तो नहीं करवा चुकी है। बल्कि उसे अपने पत्नी से प्यार से पूछना चाहिए कि इस झिल्ली के फटने का क्या कारण हुआ था? वैसे हम आपको बताना चाहेंगे कि अपनी पत्नी से इसके बारे में न ही पूछे तो अच्छा होगा क्योंकि हो सकता है कि आपकी पत्नी की यह कुमारीछिद्र साईकिल चलाने, व्यायाम करने, उछल-कूद करने या भागदौड़ के कारण से फटा हो।